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मालगाड़ी में सीमेंट की बोरियों के नीचे 4 दिनों तक दबा रहा श्रमिक


Kanera News

निम्बाहेड़ा - झज्जर (हरियाणा)
'जाको राखै साईंया, मार सकै न कोय' की उक्ति के बारे में सबको पता है, लेकिन यकीन नहीं होगा किजिंदगी ऐसे भी जीत सकती है। यहां एक मालगाड़ी के बंद डिब्‍बे में सीमेंट के कट्टों के नीचे दबे एक श्रमिक को जिंदा निकाला गया। वह चार दिनों तक सीमेंट के कट्टों के नीचे दबे रहकर मालगाड़ी में सफर करता रहा। मालगाड़ी यहां पहुंची तो इस सीलबंद डिब्‍बे को खोलने के बाद उसके बारे में पता चला।


चार दिन तक मालगाड़ी के डिब्बे में बंद रहा मजदूर, झज्जर में जब सीमेंट उतारी जाने लगी तो पता चला


जानकारी के अनुसार, शनिवार देर रात झज्‍जर रेलवे स्टेशन पर राजस्थान के चित्तौड़गढ से आई मालगाड़ी की सील बंद बोगी का दरवाजा खोलने के बाद मजदूर सीमेंट के कट्टे उतारने में जुट गए। अभी उन्होंने बोगी से सीमेंट के 20-25 कट्टे ही उतारे थे कि अंदर से एक दबी सी आवाज आई- 'जल्दी से निकालो भाई, दम घुट रहा है।'


अस्‍पताल में भर्ती मालगाड़ी से निकाला गया मजदूर।


इस पर सीमेंट के कट्टे उतार रहे मजदूर चौंक गए, देखा तो उन्हें गाड़ी के अंदर सीमेंट के कट्टों के बीच किसी व्‍यक्ति का सिर दिखाई दिया। आनन-फानन में काफी संख्या में मजदूर और अन्य लोग एकत्रित हो गए। सभी बोरियों को हटाकर उस व्यक्ति को बाहर निकाला अौर उसे उपचार के लिए नागरिक अस्पताल ले गए। वहां से उसकी गंभीर हालत को देखते रोहतक पीजीआइ रेफर कर दिया गया।


इससे पूर्व मामले की सूचना पुलिस को भी दी गई। उसने भी मौका मुआयना किया। बयान लेने पहुंचे उप-निरीक्षक वजीर सिंह ने बताया कि अभी बोगी से निकला मजदूर दीपचंद पूरा बयान देने की स्थिति में नहीं है। उल्लेखनीय है कि 14 मार्च को राजस्‍थान के चितौड़गढ़ जिले के निम्बाहेड़ा से एक बोगी में सीमेंट के कट्टे लादने के बाद उसे सीलबंद कर मालगाड़ी को रवाना हुई।


अस्‍पताल में मालगाड़ी से निकाले गए मजदूर से पूछताछ की कोशिश करता पुलिसकर्मी।


शनिवार देर शाम यह मालगाड़ी झज्जर रेलवे स्टेशन पहुंची थी। मजदूर इंद्र ने बताया कि जो मजदूर दबा हुआ था उसके ऊपर 12 से 15 बैग पड़े हुए थे। उसका चेहरा ही दिख रहा था। जैसे ही उसने हमें देखा तो बाहर निकालने के लिए कहा। सीलबंद बोगी में वह कैसे बंद हुआ, इसका किसी को मालूम नहीं है।


उपचार के दौरान बोला- मैं ठीक हूं सभी को जानता हूं


करीब चार दिनों तक सीमेंट के कट्टों के नीचे बोगी में दबे रहे युवक की पहचान बिहार के कटिहार जिले के कोलासी गांव निवासी दीपचंद दास के रूप में की गई है। अस्पताल में उपचार  दौरान हालांकि दीपचंद पूरी तरह से होश में था। लेकिन मानसिक रूप से काफी थकान महसूस कर रहा था। डाक्टर, नर्सिंग स्टॉफ, पुलिस सहित जो भी कोई उससे कुछ पूछता था तो वह सिर्फ यही कहता था कि मैं ठीक हूं, सभी को जानता हूं। मेरे ऊपर सीमेंट के कट्टे रखे हैं, उसे हटा दो। मुझे अपने घर जाना है।



'जाको राखै साईंया, मार सकै न कोय'


रेलवे स्टेशन पर मौजूद मजदूरों का कहना था कि यहां 'जाको राखै साईंया, मार सकै न कोय' कहावत पूरी तरह चरितार्थ होतीत है। सीमेंट के कट्टों के बीच तो वैसे ही सांस लेने में परेशानी होती है और मजदूर मुंह पर कपड़ा ढांप कर कट्टे उतारते हैं। बोगी में कट्टों के नीचे बिना खाए-पीए चार दिन बंद रहना किसी ईश्वरीय चमत्कार से कम नहीं है। बहरहाल, पुलिस भी दीपचंद के सामान्य होने के इंतजार में है ताकि स्थिति साफ हो सके कि माजरा क्या है।