Ticker

6/recent/ticker-posts

Advertisement

निंबाहेड़ा - भूमि आवंटन की जानकारी छूपा रहे हैं भंडारी

निंबाहेड़ा
प्रशासनिक अधिकारियों का सुर्खियों में आना कोई नई बात नहीं है। कोई ना कोई अधिकारी या कर्मचारी आए दिन अखबारों में छपने वाली खबरों में लाल घेरे में छपे दिखाई देते हैं लेकिन बाद में अखबार के लाल घेरो में छपने वाले यह अधिकारी और कर्मचारी कब सिस्टम के मुख्य धारा में शामिल होकर अपने कारनामों को अंजाम देने लगते हैं पता ही नहीं चलता है। जब मामले सामने आते हैं तो जिम्मेदार भी चुप्पी साधने से गुरेज नहीं करते हैं। दरअसल मामला निंबाहेड़ा के उपखंड अधिकारी के पद पदस्थापित चंद्रशेखर भंडारी का है जो अब भूमि आवंटन को लेकर लाल घेरे में तो नहीं लेकिन सवालों के घेरे में खड़े होते नजर आ रहे हैं। क्योंकि उपखंड कार्यालय द्वारा उपखंड क्षेत्र में किया गया भूमि आवंटन किसी पौराणिक कथाओं के तिलिस्म से कम नजर नहीं आ रहा है। इस आवंटन को लेकर जहां निचले स्तर के जिम्मेदार पूरी तरह से अनजान है वहीं उपखंड कार्यालय में इन आवंटी लाभार्थियों को खातों में ऑनलाइन समायोजित करने की कवायद की जा रही है। ना तो इस आवंटन के दस्तावेज उपलब्ध कराए जा रहे हैं और ना ही इसे लेकर अधिकृत रूप से उपखंड अधिकारी चंद्रशेखर बोलने को तैयार हैं।हालात ये हैं कि इस आवंटन का मकड़जाल लगातार उलझता जा रहा है क्योंकि इससे जुड़ी जानकारियां सार्वजनिक करने के बजाए अंदर खाने दबा कर रखी जा रही है। ऐसे में बेगारी कर्मचारी से लेकर बिना डेपुटेशन कर्मचारियों से काम करने में माहिर उपखंड अधिकारी को लेकर लगातार चर्चा जोरों पर है। भूमि के आवंटन को तिलिस्म बनाकर रखने वाले उपखंड अधिकारी अब खुद ही इस पूरे मामले में उलझते दिखाई दे रहे हैं और उनकी कार्यप्रणाली से ऐसा प्रतीत होने लगा है मानो वह भाव आवेश में आकर बौरा गए हैं। लेकिन सवालों का सिलसिला है जिसे कोई जवाब फिलहाल नहीं मिल रहा है।

पटवारी से लेकर जनप्रतिनिधि तक अनजान, फिर किसको मिली जमीने!
जिले के आला अधिकारियों की माने तो राज्य सरकार ने आमजन को फायदा पहुंचाने के लिए यह प्रक्रिया शुरू की थी कि भूमिहीन लोगों को जमीन आवंटित की जाएगी जिससे कि उनके जीवन स्तर में सुधार हो सके। लेकिन निंबाहेड़ा उपखंड में सूत्रों के अनुसार सर्वाधिक आवंटन हुए हैं लेकिन आवंटन की कोई अधिकृत जानकारी या सूचना नहीं मिल पा रही है। जिले के आला अधिकारियों की माने तो पंचायत स्तर पर लाभार्थी जिन्हे लाभ मिला है उनकी सूची सार्वजनिक किए जाने की प्रक्रिया अपनाए जाने के निर्देश है, लेकिन जब सीधा सवाल ने उपखंड क्षेत्र में पदस्थापित पटवारियों, सचिवों और स्थानीय जनप्रतिनिधियों से बातचीत की तो अधिकांश ने ऐसी किसी प्रक्रिया की जानकारी होने से इंकार कर दिया, वहीं एक पटवारी ने जानकारी होने की बात कही लेकिन अधिकृत रूप से जानकारी उपखंड अधिकारी कार्यालय से लेने की बात कहकर पल्ला झाड़ लिया, जहां से लंबे समय से जानकारियां छुपाने की कवायद में उपखंड अधिकारी कार्यालय और उसके कर्मचारी जुटे हुए हैं। ऐसे में इस प्रक्रिया को लेकर सवाल खड़े हो रहे हैं वहीं लाभार्थी भी खुलकर सामने नहीं आ पा रहे हैं और अंदर खाने ऑनलाइन की प्रक्रिया अपनाकर पूरे मामले को जल्द से जल्द निपटाने की कवायद तेजी से की जा रही है।

तुगलकी फरमान पर हुआ था आक्रोश, एसीबी तक पहुंचा था मामला
2015 बैच के आरएएस चंद्रशेखर भंडारी ने सूची में नाम आने के बाद राजस्थान प्रशासनिक सेवा का कैडर जॉइन किया था वहीं शेरगढ़ में पदस्थापन के दौरान अपने तुगलकी फरमान को लेकर चर्चाओं में रहे थे। और बात एसीबी तक जा पहुंची थी। दरअसल स्थानीय स्तर पर जब भंडारी की कार्यशैली पर सवाल उठने लगे थे तो उन्होंने उपखंड मजिस्ट्रेट का अधिकार उपयोग करते हुए मीडिया पर सेंसर की कैंची चलाने की कोशिश की थी और आदेश जारी होने के बाद मीडिया की स्वतंत्रता पर अपनी मनमानी लागू करने की कवायद कर देश की इमरजेंसी जैसे हालात पैदा करने की कोशिश की थी। लेकिन जब उन्होंने इस तरह का तुगलकी फरमान जारी किया। वहीं वहां से रिलीव होने के बाद भी बेक डेट में कार्य करने की जानकारी लोगों को मिली तो कार्यशैली से आक्रोशित लोगों की शिकायत सरकार और जनप्रतिनिधियों तक पहुंची थी और एकाएक भ्रष्टाचार निरोधक ब्यूरो की टीम ने उपखंड अधिकारी के आवास पर रेड की और 4 लाख से अधिक की नकदी बरामद की थी। और इसके बाद भंडारी को वहां से कार्यमुक्त करने के बाद लोगों ने राहत की सांस ली थी। लेकिन एसीबी के हत्थे चढऩे के बाद फील्ड से हटाए गए चंद्रशेखर भंडारी को जब फील्ड में पोस्टिंग मिली तो कुछ समय उन्होंने संयम बनाए रखा लेकिन निंबाहेड़ा में पदस्थापन के बाद फिर उनकी कार्यशैली सवालिया हो गई। ऐसे में यह कहने से परहेज नहीं किया जा सकता कि उपखंड अधिकारी भंडारी का विवादों से पुराना नाता रहा है अखबार के घेरे में आकर हाशिये पर पहुंचे भंडारी अब सरकार की योजना को हाशिए पर ले जाने की कवायद में जुटे हुए हैं जिस पर जिम्मेदारों की चुप्पी समझ से परे है।

राजनीतिक रसूखदार से जुड़े हैं तार !
सूत्रों का कहना है कि इस पूरे मामले के तार राजनीतिक रसूखदारी का भी जमकर उपयोग किया गया है। सूत्रों की माने तो इस पूरे भूमि आवंटन को संचालित करने के पीछे घाटा क्षेत्र के एक रसूखदार की भी पूरी भूमिका जुड़ी हुई है। और राजनीति में सीधी पैठ होने के कारण जहां बड़े नेताओं के संपर्क का फायदा उठाया गया वहीं उन लोगों को भी अनजान रखा गया और अब इस मामले में सूचनाएं सार्वजनिक नहीं करने का मिलाजुला प्रयास किया जा रहा है। ऐसे में संभावना है कि इस मामले के तार और भी अंदर तक जुड़े हो सकते हैं।
इधर अंदर खाने जा रही है बेगारी!
बेगारी कर्मचारी का मामला सार्वजनिक होने के बाद सूत्रों के अनुसार उसकी सीधी आवाजाही कार्यालय में कम हो गई है वही अंदर खाने बैक डोर से बेगारी का खेल बदस्तूर जारी है। सूत्रों का यहां तक कहना है कि जो काम पहले आमने-सामने बैठकर होते थे उन्हें दूसरे तरीकों से संपन्न करवाया जा रहा है।
                  
  जिले में हुए भूमि आवंटन के मामले में अधिकृत आंकड़ों की जानकारी बाहर होने से नहीं दे सकता हूं, निंबाहेड़ा के बारे में जानकारी चित्तौड़गढ़ पहुंचने पर दे पाऊंगा। आवंटन के संदर्भ में सूचियां पंचायत स्तर पर प्रदर्शित की जाती है।
अरविंद कुमार पोसवाल, जिला कलेक्टर, चित्तौड़गढ